वैष्णव समाज रत्न ,मूर्धन्य साहित्यकार ,राष्ट्रीय कवि ,पूर्व सांसद ,पूर्व मंत्री ,आदरणीय बालकवी जी बैरागी का स्वर्गवास रविवार दी .13 मई 2018 को हो गया है .वे 88 वर्ष के थे जिस उम्र में बच्चे ठीक से बोलना भी जानते हैं, उस उम्र में बालकवि बैरागी ने सुंदर गीत लिखकर ना केवल अपने टीचरों के चहेते बने, बल्कि बालकवि होने का सम्मान भी हासिल कर लिया. उन्होंने अपनी पहली रचना 9 साल की उम्र में लिखी जब वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे. नंदरामदास बैरागी उनका असली नाम था. 10 फरवरी 1931 ,को मध्यप्रदेश में मनासा ,नीमच के पास एक छोटे से गांव में नंदराम दास नाम के एक बालक का जन्म हुआ। यह बालक अपने बचपन में ही मालवी व हिंदी में कविता करने लगा । स्वतंत्रता के बाद एक दिन भारत के तत्कालीन गृहमंत्री श्री काटजू मंदसौर में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। वहां पर नंदराम दास नाम के उस बालक ने कई कविताएं पढ़ी । गृहमंत्री उनसे बहुत प्रभावित हुए ।सभा से जाते वक्त उन्होंने पूछा कि वह बालक कहां है वह बालकवि , और उस दिन से श्री नंदराम दास बैरागी का नाम बालकवि बैरागी पड़ गया। बैरागी जी ने प्रथम श्रेणी में हिंदी में एम ए. की थी। एडमिशन तो उन्होंने पीएचडी में भी लिया था लेकिन तब तक वे मंत्री बन चुके थे और पीएचडी के लिए कभी समय नहीं निकाल पाए ।यह बात अलग है कि आज ,एक दर्जन से भी ज्यादा शोधार्थियों ने श्री बालकवि बैरागी के जीवन और साहित्य पर पीएचडी कर ली है। राजनीतिक सफर बैरागी ने अपने कॉलेज समय से ही राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी. वह 1980 से 1984 तक मध्य प्रदेश के मंत्री रहे और वर्ष 1984 से 1989 तक लोकसभा के सदस्य रहे. वह बाद में राज्यसभा के सदस्य भी रहे. राजनीतिक पारी शुरू करने से पहले उन्होंने अध्यापन भी किया. 25 से अधिक फिल्मों के गीत लिखे उन्होंने करीब 25 फिल्मों के लिए गीत लिखे. रेशमा और शेरा फिल्म के लिए लिखा उनका गीत 'तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर में शाख रे' अपने समय का बहुत ही पॉपलुर गीत बना. लता जी ने इस गीत को अपनी सुरीले स्वरों से सजाया. पत्रों का खुद ही देते थे जवाब बालकवि बैरागी के देश-विदेश में हजारों प्रशंसक थे. वह अपने प्रशंसकों से पत्रों के माध्यम से जुड़े रहते थे. उनके पास आने वाले हर पत्र का वह खुद ही जवाब देते थे. पहले ही पत्र में वह ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे आपको और आपके परिवार को वह वर्षों से जानते हों. बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन के बाद यह खासीयत केवल बालकवि बैरागी में थी. बैरागी जी का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण था उनके पास जिंदगी भर कोई कार तक भी नहीं रही । वे 50 वर्षों से अधिक समय तक राजनीति में रहे लेकिन ईमानदारी की उनसे बड़ी मिसाल आज तक भी देखने को नहीं मिलती। बैरागी जी हिंदी साहित्य के बहुत बड़े हस्ताक्षर थे ।उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और कहानी संग्रह लिखें। बाल साहित्य में भी उन का महत्वपूर्ण योगदान है ।छोटे बच्चों के लिए उन्होंने कई किताबें लिखी। उनकी लिखी हुई कविता--- "मेरी यह छोटी सी विनती रखना मालिक ध्यान में , मुझे हमेशा पैदा करना प्यारे हिंदुस्तान में ", मध्यप्रदेश में बहुत लंबे समय तक स्कूलों में सुबह की प्रार्थना के रूप में गाई जाती थी। हिंदी काव्य मंच को स्थापित करने का श्रेय बैरागी जी को जाता है ।उन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने भी लाल किले से कविताएं पढ़ी। उस वक्त चीन के साथ युद्ध चल रहा था। बैरागी जी ने कविता पढ़ी " लाल किले की ललाई पर लाल चीन ललचाया है, भारत मां के लोहा लाडलो ,मां ने तुझे बुलाया है । उनकी कविता इतनी प्रभावशाली थी कि कहा जाता है कि वहां बैठी हुई महिलाओं ने देश के सैनिकों के लिए अपने गहने तक उतारकर मंच पर रख दिए थे। बैरागी जी लगभग एक दशक तक फिल्मों से भी जुड़े रहे। उनकी गिनती साहित्यिक गीतकार के रूप में होती थी। वे लगभग 25 फिल्मों के गीतकार रहे । रेशमा और शेरा फिल्म का उनका गीत " तू चंदा मैं चांदनी " आज भी सुनने को मिलता है ।उनका लिखा हुआ गीत " फिजाओं से जरा कह दो ,हमें इतना सताये ना" , एक सदाबहार गीत है। लता मंगेशकर कहती हैं कि उनके लिए सबसे मुश्किल गाना बालकवी जी का लिखा हुआ गीत तू चंदा मैं चांदनी था ।हिंदी सिनेमा में जब फूहड़ता ने प्रवेश किया तो वैरागी जी सिनेमा जगत से बाहर निकल आएं। बैरागी जी को साहित्य के अनेक सम्मान प्राप्त हुए। उन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलन की कई बार अध्यक्षता की। वे बहुत लंबे समय तक संसद की राजभाषा समिति के सदस्य रहे। बैरागी जी की हर कविता में साहित्य का सृजन होता है। उन्होंने दीप को लेकर ,सूरज को लेकर ,प्रकृति को लेकर अनेक कविताएं लिखी। उन्होंने देश भक्ति पर अनेक कविताएं लिखी। यद्यपि उन्हें ओजस्वी कवि कहा जाता है, परंतु मैं उन्हें जनमानस और राष्ट्रप्रेम का कवि कहूंगा। उन्होंने बैरागी समाज का प्रतिनिधित्व न केवल विधानसभा और संसद में किया ,बल्कि साहित्य जगत में भी उन्होंने उस परंपरा को कायम रखा जो सूरदास ,नागरीदास तथा अलूरी बैरागी ने कायम की थी। उन्हें कभी भी किसी पद का लालच नहीं रहा । वे कभी किसी के सामने टिकट मांगने नहीं गए। जब वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए तो कांग्रेस आलाकमान ने स्वयं उन्हें टिकट दीया। श्री बालकवि बैरागी जी के निधन से हिंदी साहित्य के साथ साथ वैष्णव समाज में में एक ऐसी रिक्तता उत्पन्न हो गई, जिसे भर पाना संभव नहीं होगा। अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ परिवार की ओर से उस महापुरुष को कोटि कोटि सादर नमन्
Uploded : 05:00 AM 15 May 2018