हमारे भारतीय गौरवमई इतिहास जो मुगलों ने दबा दिया और आतंक व आक्रांताओं का इतिहास महान बताया गया तभी हमारे सनातन धर्म का हास हो रहा है बड़े दुखी हृदय से कहना पड़ रहा है हमारे सनातनधर्म में अपने अमर बलिदानी शहीद को भुलाया गया और हम बिखरे पड़े हैं जाति और मजहब में और हमारा भारत सनातन धर्म पिछड़ता ही जा रहा है उस की जड़े कमजोर होती जा रही है हम खोखले होते जा रहें हैं। आप लोगो को इतिहास से रूबरू होना चाहिए एक वीर शहीद महायोद्धा बन्दा वीर बैरागी जी उर्फ बाबा बन्दा सिंह बहादुर बचपन 12 साल तक का नाम लक्ष्मणदास भारद्वाज था जो राजोरी पुंछ जिले के रहने वाले रमेश देव राजपूत घराने में जन्म लिया।उन्होंने बचपन मे हिरनी का शिकार किया जिससे हिरणी के 2 शावक तडफ़ कर मर गए क्योंकि हिरनी गर्ब्वती थी। हिरनी मारने वाली घटना के बाद उनका मन विचलित हो उठा और घर बार त्याग कर जानकीदास बैरागी संत का शिष्य बन गया। गुरु जानकी दास ने नाम दिया माधोदास बैरागी। फिर रामशरण के डेरे से शिक्षा व दीक्षा ली गुरु गोबिन्द जी से नान्देड़ की मुलाकात के बाद गुरु गोबिन्द जी ने नाम दिया "गुरु बख़्ससिंह" पर माधोदास ने कहा म सिर्फ आपका बन्दा हू। बन्दा नाम ही प्रचलित व प्रसिद्ध रहा। अब गुरु बख़्स कैसे बन्दा बहादुर बना 1935 में इतिहासकार गेंडा सिंह ने बन्दा बैरागी की वीरता के कारण नाम दिया बहादुर ओर पंजहाबी भाषा मे वीर भाई को कहते हैं सो वीरता के कारण खिताब मिला बहादुर का। वीर या बहादुर बात तो एक ही है । पंजाब में बन्दा बहादुर प्रसिद्ध हुआ। परन्तु अन्य राज्यों में "बन्दा वीर बैरागी" से ही प्रसिद्धि पाई समकालीन इतिहासकार जो राष्ट्रीयकवि मैथिलीशरण गुप्त की "गुरुकुल"में 16 पेज की कविता में बैरागी जी का वर्णन है। राष्ट्रगान के रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर ने बांग्ला भाषा मे जो "बन्दी वीर" नामक कविता लिखी है जो रोंगटे खड़े कर देती है। वीर सावरकर की कविता "मूर्ति दूजी ती" तथा इसी प्रकार भाई परमानन्द जिसको भारत सरकार ने पदक से नवाजा है ने भी "बन्दा बैरागी " नामक पुस्तक लिखी गयी है । अब बताना चाहूंगा कि 300 सालों तक इनको महज इसलिय भुलाया गया क्यूंकि हिंदुओ के लिए सिख बन गया बन्दा बैरागी हिदुओं ने कद्र नहीं की। ओर सिख इसलिए भुले क्योंकि ;- जब सबसे बड़े प्रान्त सरहिन्द पर विजय कर ली ओर खतरनाक सूबेदार वजीरखान को मार कर गुरु गोबिंद जी के दोनों पुत्रों की हत्या का बदला ले लिया । पर ये सुरमा राजगद्दी होते हुए भी गद्दी उत्ते नही बैठा । राजा होते हुए भी राजा नही बना उन्होने भाई बाज सिंह को सरहिन्द के वजीर को मारकर सूबेदार नियुक्त किया । न कभी राजगद्दी ली ऒर तो और गुरु नानक जी और गुरु गोबिन्द जी के नाम के सिक्के व मोहर चलाय ओर लोहगढ़ वर्तमान मे सडोरा को अपनी राजधानी बनाया। अब कमज़ोर मुगल बादशाह डर गया ओर उसने फुट डालने की चाल खेली। इसके लिए मुगल राजा फ्रुक्षियर ने माता सुंदरी जो गुरुगोबिंद सिंह जी की दूसरी ब्याहता पत्नी थी,जो मुगल संरक्षण में थी। उससे मानवता की दुहाई देकर युद्ध रोकने और सन्धि करने के हुक्मनामे जारी करवा दिए । परन्तु बन्दा ने हुक्मनामा मानने से ये कहकर इंकार कर दिया कि गुरु गोबिंद जी के आदेश सर्वपरि । बार बार गलत आदेशो को देखकर बन्दा ने कहना पड़ा कि म तो बैरागी हूँ मुझ पर आपके आदेश लागू नही होते तो गुरुमाता के आदेशों की अवहेलना से सिख नाराज हो गए गुरु माता ने बन्दा का साथ छोड़ने को कहा ओर फिर 2 गुट बन गए एक "तत खालासा " सिख पन्थ जिसका नेतृत्व बाबा विनोद सिंह ओर उसका पुत्र काहन सिंह जो गुरु के 5 प्यारो में से थे, ने किया । और दूसरा बन गया " बंदइ खालसा" जिसका संचालन बन्दा बैरागी ने किया । इस प्रकार बन्दा सिख समाज से सम्बंधित नहीँ रहा । जो 5 प्यारे थे उनमें भाई बाज सिंह व दया सिंह, फतेह सिंह बैरागी के साथ रहे इतना होने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी उन्होंने फिर अपनी सेना संगठित की अबबन्दई खालसा में, किसान जाट , मजदूर, चर्मकार लोहार, हरिजनों ,यहाँ तक कि मुसलमान जो अन्याय के विरुद्ध थे उन्हें भी ,36 बिरादरी को सेना में शामिल करके युद्ध कौशल सिखाया ।ओर फिर लाहौर प्रान्त पर युद्ध करने को निकल पड़ा । मुगलो ने दुष्प्रचार किया कि ये सिख नही है ये आडम्बरी ये 11वां गुरु बनने की फिराक में है । चाल काम कर गयी और । फिर तटखालसा ग्रुप का लीडर बाबा विनोद सिंह बन्दा बैरागी के विरुद मुगलों से मिल गया और जब लाहौर चढ़ाई की तो विनोद सिंह को सामने देख कर बन्दा ने कहा अब लड़ाई अपनो से हो गयी अब अपने पुराने साथियों को कैसे मारू अपनो से लड़ाई कठिन थी।ओर वापिस आ गया गुरुदासपुर नांगल गढी के किले में डेरा डाल लिया 8 मास तक दोनों तरफ ज्यों की त्यों स्थिति बरकरार रही ।हिमत किसी की नही हुई "बन्दा " पर आक्रमण करने की । 8 महीने बाद रसद पानी खत्म होने लगा तो सैनिक भूख से बीमार होने लगे घास फुस खाकर जिंदा रहे ।तभी बादशाह फरुक्षीयर की राजशाही सेना ने किले पर आक्रमण कर दिया और भूखें सैनिको को मार गिराया खूनमखुन बुरा हाल हो गया लासों के पेट चिर डाले ये देखने को कहीं सोने के सिक्के तो नही खा गए। बन्दा सिंह बैरागी को बेड़ियोँ में जकड़ कर हाथी पर पिंजरे में बंद करके लाया गया और 740 सैनिकों को साथ लेकर सैनिको के कटे हुये सर नेजो भालो पर टांग कर इतिहास का सबसे क्रूर बेहूदा जलूस निकाला गया ओर देल्ही तक लाया गया , जहाँ आज वर्तमान में होर्डिंग लाइब्रेरी है । दोस्तो 5 मार्च से 13 मार्च 1716 तक हर रोज 100 सैनिको का शीश बन्दा को झूकाने के लिए उसके सामने उतारा जाने लगा ।जब बन्दा ने इस्लाम स्वीकार नही किया तो उनके लगभग 4 साल के अबोध बालक अजय सिंह को बन्दा द्वारा मारने की कहा गया कि तुम इतने निःठुर हो तो इसको मार कर दिखाओ तो बन्दा ने उत्तर दिया कि ये तो मेरा पुत्र है ये बालक अगर तुम दुश्मनों का भी होता तो भी म ये काम नही करता । इतना सुनते ही जालिमो ने उस बालक का दिल निकाल कर बन्दा के मुख में जबरन ठूस दिया पर बन्दा जी तो इन सब से बहुत ऊपर निकल चुके थे ।फिर बन्दा को कहा कि तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ तो बन्दा जी ने कहा म मरने से नही डरता ये शरीर ही सब दुःखो का मूल जड़ है ।इतना सुनते ही सब ओर सन्नाटा छा गया । परन्तु बादशाह को ओर चिढ़ हुई कि ये झुका नही तो उसने जल्लादों को हुक्म दिया कि गर्म चिमटों से इनका मांस नोच दो ।मांस नोंचने पर बन्दा ने उफ तक नही की फिर बैरियों ने तलवार से बन्दा की आंखे निकाली गई जब बन्दा ने आ्ह तक नही भरी तो फिर उसके हस्थीपिंजर शरीर को 9 जून 1716 को हाथी से कुचलवा दिया दोस्तो उन्होनें अपने पास सिर्फ अपनी भक्ति रक्खी ओर परम् बलिदान पथ पर अग्रसर होकरअपने तीनों नाम बन्दा वीर बैरागी को सार्थक कर दिया। अब ये बन्दा बैरागी था सिख था हिन्दू था ये जो भी था सच्चे अर्थों में तो ये "राष्ट्र नायक "था । आज ऐसे ही राष्ट्र नायक की जरूरत ह देश को। जय बन्दा वीर बैरागी अमर शहीद बन्दा बैरागी उर्फ बाबा बन्दा सिंह बहादुर को ????????????????????आओ उनके जन्मदिन के मौके पर श्रदापूर्वक याद करके इनको नमन करते हैं ।बधाई देते हैं कि ऐसे राष्ट्रनायक ही इस धरा पर पैदा हो जो निस्वार्थ भाव से देश सेवा करे । 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Uploded : 08:35 AM 16 Oct 2018